Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 211
________________ कहने कि अरे नीम ! इस प्रकार भा माहित बहन कहने के लिए तुमसे पूछा ही किसने था ? पदि तू डरपोक है तो घर में बैठ, तू नपुंसक है, व्यर्थ के बोलने से क्या लाभ है ? मदोन्मत्त हाथियों को घटाओं, स्पष्ट नाचते हुए घोड़ों और हर्षित होते हुए योद्धाओं के विस्तार से जिसमें दिशाओं के तट आच्छादित हैं ऐसी रणभूमि में तलवार की चमकती हई धारा से मैं युद्ध के लिए उद्यत राजाओं की लक्ष्मी का हरण कर कुन्द के फूल के समान उज्ज्वल अपनी कीर्ति के द्वारा समस्त दिशाओं को अभी-अभी सफ़ेद करता हूँ। तदनु विकटकटविगलदानधाराप्रवाहानुभयतः सृद्धिः सनिईरैरिव नीलाचलः .................क्रमेणाजिराङ्गणमगाहन्त !-पृ. १८४-१८५ इस गध द्वारा पतुरंग सेना का तथा'सदन विनिर्मित-विशाल-विशिखा-सहस्रविराजमान........लद्रङ्गस्थलमशोमत'। इस गद्य द्वारा रंगभूमि का जो स्फूर्तिदायक वर्णन किया गया है वह हृदय में जोश उत्पन्न करनेवाला है। दोनों सेनाओं के कल-कल शब्द का वर्णन देखिएयुक्षप्रारम्भकेली पिशुन-जयमहावाद्यघोषरशेष hषाराबहयाना मदमुक्ति-गजोहितजुम्भमाणः । रथ्याध्वानः पदातिप्रचुर-तरमित्सिहनादरमन्दः शब्दकाम्भोधिमग्नं जगदिदमभवत्कम्पमान समन्तात् ।।४।। -पृ. १८६ उस समय युद्धक्रीड़ा के प्रारम्भ को सूचित करनेवाले जय-जय के नारों से, बड़े-बड़े वादियों के शब्द से, घोड़ों की हिनहिनाहट से, मदोन्मत्त हाथियों की गर्जना से, रथों की चीत्कार से, और पैदल सैनिकों की बार-चार प्रकट होनेवाली सिंह-ध्वनि से यह समस्त संसार एक शब्दरूपी सागर में निमग्न होकर सभी ओर से कांप उठा था। मुटभेड़ का दृश्य देखिए पदाति पदातिस्तुरङ्गं तुरङ्गी मदेर्भ मदेभो रपस्थं रथस्थः । इयाय क्षणेन स्फुरदयुद्धरङ्ग ध्वनजनवाद्ये स्वनच्छिञ्जिनीके |॥४४॥ जहाँ जीत के बाजे बज रहे थे और धनुष को लोरी के शब्द हो रहे थे ऐसे उस युद्ध के मैदान में दाण-भर में ही पैदल चलनेवाला पैदल चलनेवाले से, घुड़सवार घुड़सवार से, मदोन्मत्त हाथी का सवार मदोन्मत्त हाथी के सवार से और रथ पर बैठा योद्धा रथ पर बैठे योद्धा से मिल गया-भिड़न्त करने लगा। ____ हाथियों की सूड़ों से निकले हुए जलकण और उठती हुई धूलि का वर्णन साहित्यिक भाषा में देखिए, कितना सुन्दर बन पड़ा है महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन २००

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