Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 163
________________ मण्डलम्, कुत्रचित्स्तनम्पयशिशुसंवा हरिणी भुम्नग्रीवमवलोकयन्तं घावमानहरिणम्, फूत्रचन वशनान्तरस्थिततृणकबलच्छेदशन्दं नियम्य न्याजिह्माङ्गः कुर: श्रूयमाणगानकलाप्रवीणं किरावस्त्रणम्, क्वचन गर्जनजितस्तम्बेरमनिचयं मृगेन्द्रवयम्, कुत्रचिद्भूधराकारमजगरनिकरं पश्यन, क्रमेणातिलचितविपिनपथः, क्वचिदरण्ये समुद्गतधूमपरीताभ्रषभूमिरहतया सजलजलधश्यामल तहानेका रमिक कुर्वन्तं प्लोषचटचटात्कारेणाट्टहासमिवातन्वानमतिधेगसमाक्रान्तकाननं दवदहनं ददर्श ।' -पृ. ९६-९७ आकाश में छायी हुई धनघटा की सुषमा देखिएतस्याकूतमवेत्य यक्षपतिना वेगेन सङ्कल्पिता जीमूता वियदङ्गणे परिणता धूमप्रकारा इव । उद्यद्गजितपाटिताखिलमहादिग्भिसयस्तत्क्षणं वर्ष हषितजीवका विदधिरे कल्पान्तमेघायिताः ॥२२|| -पृ. ९९ सूर्यास्तमन, तिमिरोद्गति, चन्द्रोषय, पानगोष्ठी आदि धर्मशर्माभ्युदय के चतुर्दा सर्ग में सूर्यास्तमान, प्रदोष सम्बन्धी तिमिरोद्गति तथा चन्द्रोदय' का वर्णन है और पंचवा सर्ग में पान-गोष्ठी और सुरत-प्रसंग का निरूपण है। कवि को कोमलकान्तपदावली और अर्थ की माधुरी ने प्रत्येक विषय को इतना सरस बनाया है कि सहृदय पाठक उस वर्णन को प्रारम्भ कर बीच में नहीं छोड़ना चाहता है। माघ ने भी शिशुपालवध के नवम और दशम सर्ग में यही विषय प्रस्तुत किये हैं। अस्ताचल पर आस्व अस्तोन्मुख सूर्य का वर्णन धर्मशर्माभ्युदय में देखिए कितना सुन्दर बन पड़ा है अस्लाद्रिमारुह्य रविः पयोधी कैवर्तवक्षिप्तकराग्रजाल: । आकृष्य चिक्षेप नभस्तटेऽसौ फ्रमात्कुलीर मकरं च मीनम ॥८॥ सूर्य एक धोवर की तरह अस्ताचल पर आरूढ़ हो समुद्र में अपना किरणरूपी जाल डाले हुआ था, ज्यों ही कर्क केफड़ा, मकर और मीन ( पक्ष में राशियाँ) उसके जाल में फंसे त्यों ही उसने खींचकर उन्हें क्रम-क्रम से अाफाश में उछाल दिया । अस्तोन्मुख लाल सूर्य का वर्णन देखिएबिम्बेऽर्धमग्ने सवितुः पयोधी प्रोवृत्तपोतभ्रममादपाने । लोलांशुकाष्ठानविलम्बिताहः सांयात्रिकेणाम्बुनि मङ्गतुमीषे ॥१०॥ भूयो जगद्भूषणमेव कर्तुं तप्तं सुवर्णोज्ज्वलभानुगोलम् । कराग्रसंदंशधृतं पयोधेश्चिक्षेप नीरै विधिहेमकारः ॥११॥ समुद्र में आधा डूबा हुआ सूर्यबिम्ब पतनोन्मुख जहाज का भ्रम उत्पन्न कर रहा था अतः पंपकिरणरूप काष्ठ के अग्नभाग पर बैठा हुआ दिनरूपी जहाज का व्यापारी मानो पानी में डूबना चाहता था । प्रकृति-निरूपण

Loading...

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221