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उस शृंगारवती के चिरसंचित पुण्य कर्म की रेखा को कोन स्त्री लांघ सकती है ? जिसने कि निश्चित ही यह मनोरणों का अगम्य प्राणपति प्राप्त किया है।
किमेणकेतुः किमसावन ः कृष्णोऽपवा किं क्रिमों कुबेरः ।
लोकेऽनवामी विकलाङ्गशोभाः कोप्यन्य एवैष विशेषितीः ।।१७।१०२॥
क्या यह चन्द्रमा है ? क्या यह कामदेव है ? क्या यह कृष्ण है ? और क्या यह कुबेर है ? भयत्रा संसार में ये सभी शरीर की शोभा से विकल है-चन्द्रमा कलंकी है, काम अशरीर है, कृष्ण कृष्ण-वर्ण है और कुबेर लम्बोवर है अतः विशिष्ट शोभा को धारण करने वाला यह कोई अन्य ही विलक्षण पुरुष है।
पासुर के भवनांगण में विवाह-दीक्षा महोत्सव के अनन्तर वे श्रृंगारवती के साथ सुवर्ण-सिंहासन को अलंकृत कर रहे थे उसी समय रत्नपुर से पिता के द्वारा भेजा हुभा एक दूत इस आशय का पत्र लेकर आया कि आपको पिता ने अविलम्ब बुलाया है । पिता की आशा को शिरोधार्य करके कुनिमित व्योमबान में मंगामाता के सर आरूढ़ हो रत्नपुर जा पहुंचे। पिता ने नवविवाहित पुत्र और पुत्रवधू का समभिनन्दन किया।
यहाँ ऐसा जान पड़ता है कि कवि ने तीर्थकर धर्मनाथ को युद्ध के प्रसंग से अछूता रखने के लिए ही सोधा रत्नपुर भेजा है और युद्ध का दायित्व सुषेण सेनापति पर निर्भर किया है।
धर्मशर्माभ्युक्य में चन्द्रग्रहण और जरा का अपभुत वर्णन
जन और बौद्ध-ग्रन्थों में कथा-नायक के पूर्वभवों का वर्णन भी विस्तार से मिलता है। धर्मशर्माभ्युदय में कथानायक भगवान् धर्मनाथ के पूर्वभवों का वर्णन करते हुए महाकवि हरिचन्द्र ने अवधिज्ञानी- भूतभविष्यत् के ज्ञाता प्रचेतस् मुनि के मुख से प्रकट क्रिया है कि धर्मनाथ, वर्तमान भव से पूर्व तीसरे भव में विदेह क्षेत्र के अन्तर्गत वत्सदेश की सुसीमा नगरी में राजा दशरथ थे। एक बार राजा दशरथ पूर्णिमा की रात्रि में रूपहली चाँदनी से सुशोभित सुसीमा नगरी की शोभा देखने के लिए राजभवन की छत पर बैठे हुए थे। चाँदनी में दुधी हुई सुसीमा नगरी को देखकर उनका मन अत्यन्त प्रसभ हो रहा था ।
थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि चन्द्रग्रहण हो रहा है। चन्द्रग्रहण को देख उनका मन संसार के समस्त पदार्थों से विरक्त हो गया है। विरक्त होकर उन्होंने विमलवान नामक गुरु के पास दीक्षित हो घोर तपश्चरण किया और उसके फलस्वरूप सर्वार्थसिद्धि नामझ विमान में अहमिन्द्र हुए। वहाँ से आकर राजा महासेन की सुव्रता रानी के गर्भ में अवतीर्ण हुए ।
इस पूर्वमन-वर्णन के प्रसंग में कवि ने चन्द्रग्रहण का वर्णन, देखिए, कितनी उत्प्रेक्षाओं से समलंकृत किया१७३
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन