Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 195
________________ स्तम्म ३ : नीति-निकुज धर्मवाभ्युिदय का सुभाषितनिचय धर्मशर्माम्युदय अनेक मुभाषितों का भण्डार है । सुभाषित उस प्रकाश-स्तम्भ के समान माने जाते हैं जो पथभ्रान्त पथिकों को मार्ग से विचलित नहीं होने देते और विचलित हुओं को मार्गदर्शन में तत्पर रखते हैं । अर्थान्तरन्यास या' अप्रस्तुत-प्रशंसा के रूप में आये हुए अनेक सुभाषित इस महाकाव्य की शोभा बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए इरा स्तम्भ में कुछ सुभाषितों का संकलन किया जा रहा है । अर्थ स्पष्ट है अतः मूल का संकलन किया गया है-- उच्चासनस्थोऽपि सतां न किचिन्नीचः स चित्तेषु चमत्करोति । स्वर्णाद्रिशृङ्गाग्रमधिष्ठितोऽपि काको बराकः खलु काक एव ।।१।३०।। न चन्दनेन्दीवरहारयष्टनो न चन्द्ररोचींषि न चागृतस्छटाः । सुता ङ्गसंपर्शसुन्तस्य निस्तुलां कलामयन्ते खलु षोडशोमपि ॥२:७१।। 'न परं विनयः श्रीणामाश्रयः थेयसामपि ॥३१४६।। 'नेत्रावृष्ण क्वचित्तेजस्तमसा नाभिभूयते' ।।३१६२।। 'न झुदात्तस्य माहात्म्य लढयन्तीतरे स्वराः ॥३॥६५॥ 'कथा कथंचिकथिता श्रुता वा जैनी यतश्चिन्तितकामधेनुः ॥४॥२॥ 'यद्रा किमुल्लवयितुं कथंचिकेनापि शक्यो नियतेनियोगः ।।४।४५|| 'मृगः सतृष्णो मृगतृष्णिकासु प्रतार्यते तोयधिया न धीमान्' 1॥४५४॥ "किं वा विमोहाय विवेलिना स्यात् ।।४।६१ ॥ 'को वा स्तनाग्राम्यवधूय धेनोर्बुग्ध विदग्घो ननु दोग्धि शृङ्गम् ॥४॥६६॥ 'मणेरनर्घस्य कुतोऽपि लग्नं को वा न पत परिमाष्टि तोयैः' १४।७५ 'को वा स्थिति सम्यगति राज्ञाम् ।।४।७८|| 'जायते व्रतविशेषशालिना स्वप्नवृन्दमफलं हि न क्वचित्' ।४।८६।। 'अहो मदान्धस्य कुतो विवेकः' ।।७५३॥ 'स्वजीवितेभ्योऽपि महोन्नतानामहो गरीयानभिमान एवं ॥७१५४।। 'कुतोऽथवा स्यान्महोदयः स्त्रीव्यसनालसानाम्' १७१५८11 'अबसरमुखरत्न प्रीतये कस्य न स्यात् ।।८।१५।। महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन १८४

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