Book Title: Mahakavi Harichandra Ek Anushilan
Author(s): Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ परिधान वस्त्र अल्प संख्या में उपयुक्त होते थे। पुरुष अधोवस्त्र और उत्तरपछद रखते थे। राजा-महाराजा आदि मुकुट का भी प्रयोग करते थे। स्त्रियाँ अधोवस्त्र और उत्तरच्छंद के अतिरिक्त स्वनवस्त्र भी पहनती थीं। दक्षिण के कवियों ने स्त्रियों के अवगुण्ठन---चूचट का वर्णन नहीं किया है और न पाद-कटक का, हाथ में मणियों के बलय और कमर में सुवर्ण अथवा मणिखचित मेखला पहनती थीं । गले में अधिकांश मोतियों की माला पवनी जाती थी। स्त्रियों के हाथों में कांच की चूड़ियों का कोई वर्णन नहीं मिलता है। पैरों में नूपुर पहनने की प्रथा थी और खासकर रुनमुन शब्द करनेवाले नूपुर पहनने की। राजनयिक __राजा अपनी आवश्यकतानुसार ४-६ मन्त्री रखता था, उनमें एक प्रधान मन्त्री रहता था, धार्मिक कार्य के लिए एक पुरोहित या राजपण्डित भी रहता था। राज्यसभा में रानी का भी स्थान रहता था। राजा अपना उसराधिकारी युवराज के रूप में निश्चित करता था । प्रमुख अपराधों का न्याय राजा स्वयं करता था । युद्ध और वाहन आवश्यकता पड़ने पर युद्ध होता था और अधिकतर धनुष-बाण से शस्त्र का काम लिया जाता था 1 खास अवस्था में तलवार का भी उपयोग होता था। युद्ध में रथ, घोड़े और हाथियों की सवारी का उल्लेख मिलता है। अन्य समय शिविका-पालकी का भी उपयोग होता था । इसका उपयोग अधिकांश स्त्रियां करती थी। उस समय सबसे सुखद वाहन मह्मयान-मियांना माना जाता था जो कि शिविका का परिष्कृत रूप है। शैक्षणिक ___ बालक-बालिकाएँ दोनों ही शिक्षा ग्रहण करती थीं । शिक्षा गुर-कृपा पर निर्भर रहती थी। विद्यार्थी गुरुभक्त रहते थे और गुरु सांसारिक माया-ममता से दूर । राजामहाराजा तथा प्रमुख सम्पन्न लोग शिक्षालयों की भी स्थापना करते थे पर उनमें अधिकांश उन्हीं के बालक-बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करती थीं। यातायात यातायात के साधन अत्यन्त सीमित थे। मार्ग में भीलों आदि के उपद्रव का हर रहता था अतः लोग सार्थ-झुण्ड बनाकर चलते थे। यातायात में रथ तथा शकट आदि वाहनों का उपयोग होता था। जीवन्धर के पिता राजा सत्यन्धर ने अपनी गर्भवती रानी विजया का दोहला पूर्ण करने के लिए एक ऐसे मयूररत्न का निर्माण सामाजिक वशा और युद्ध-निदर्शन १९३ _२५

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221