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स्तम्भ : १ आमोद-निदर्शन ( मनोरंजन)
धर्मशर्मा पुक्ष्य में पुष्पावचय और जलक्रीड़ा छहों तुओं के पुष्पों से सुशोभित विन्ध्याचल को बनस्थली में पुष्पावचय के लिए स्त्रिया मदमाती चाल से जा रही है। उनकी गोल-गोल भुजाएं स्थूल नितम्बों से टकराकर कंकणों का शब्द कर रही है। इस दृष्य का सुन्दर वर्णन कवि की काव्यभारती में देखिए
गतागतेषु स्खलितं वितन्वता नितम्बभारेण समं जडात्मना । भुजी सुवृत्तावपि कङ्कणक्मणैः किलाङ्गनानां कलहं प्रचक्रतुः ।।५।।
-धर्मशर्माभ्युदय, सर्ग १२ स्त्रियों की भुजाएं यद्यपि सुवृत्त थीं-गोल थों ( पक्ष में, सदाचारी श्री ) फिर भी आने-जाने में रुकावट डालनेवाले जा-स्यूल (पक्ष में, धूत) नितम्ब के साथ कंकणों की ध्वनि के बहाने मानो कलह कर रही थीं।
यही वर्णन महाकवि माघ की काव्यभारती में भी देखिएनखरविरचितेन्द्रचापलेखं ललितगतेषु गतागतं दधाना । मुखरितवलयं पृथो नितम्बे भुजलतिका मुहुरस्खलत्तण्याः ।।४।।
-शिशुपाल., सर्ग ७ नखों की कान्ति से जिसमें इन्द्रधनुष की रेखा निर्मित हो रही थी ऐसे गमनागमन को धारण करनेवाली किसी तरुणी की मुजलता कंकणों का शब्द करती हुई स्थूल नितम्ब में बार-बार टकराती थी। यहाँ वर्णनीय विषय दोनों स्थानों पर मद्यपि एक है तथापि महाकवि हरिचन्द्र ने मुजाओं को सुवृत्त और नितम्बमण्डल को जड़ विशेषण देकर विषय को अत्यधिक चमत्कारपूर्ण बना दिया है। .
चलते समय स्त्री की मेखला शब्द क्यों कर रही थी ? इसका कल्पनापूर्ण वर्णन महाकवि हरिचन्द्र की वाणी में देखिए
गुरुस्तनाभोगभरेण मध्यतः कृशोदरीयं झटिति त्रुटिष्यति । इसीव काञ्ची-कलकिङ्किणीनवणगीदृशः पूकुरुते स्म वर्मनि ।।६।।
-धर्मशा., सर्ग १२ मार्ग में चलते समय किसी मृगनयनी की मेखला किंकिणिमों के मनोहर शब्दों से ऐसी जान पड़ती थी मानो वह, यह जानकर रो हो रही थी कि यह कुशोदरी स्थूल आमोद-निदर्शन (मनोरंजन)