________________
हे भगवन् ! यह वनस्थली ठीक सीता के समान है क्योंकि जिस प्रकार सीता कुशोपरुद्धा-कुश नामक पुत्र से उपरुख थी उसी प्रकार यह वनस्थली भी खुशोपरद्धाडाभों से भरी है, जिस प्रकार सीता सतमालपल्लवा-जल्दी-जल्दी बोलते हुए लव नामक पुत्र से सहित थी उसी प्रकार यह वनस्थली भी द्रुतमालपल्लवा-तमालवृक्ष के पत्तों से व्याप्त है, जिस प्रकार सीता वराप्सरोभिर्महिता-उत्तमोत्तम अप्सराओं से पूजित थी उसी प्रकार यह वनस्थली भी उत्तमोत्तम जल के सरोषरों से सुशोभित है और जिस प्रकार सीता स्वयं अकल्मषा-निर्दोष थी उसी प्रकार वह वनस्थली भी पंक मादि दोषों से रहित है । यतः आप राजाओं में राम-रामचन्द्र हैं ( पक्ष में रमणीय ) है अतः सीदा की समानता रखनेवाली इस वनस्थली को स्वीकृत कीजिए, प्रसन्न होइए।
इस प्रकार धर्मशर्माभ्युदय का यह विन्ध्य-वर्णन भाषा, भाव और अलंकार की दृष्टि से निरुपम है।
१४४
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीकन