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स्तम वर्णन
धर्मशर्माभ्युदय का वेश और नगर-वर्णन देश, माम और नगर में फिसका वर्णन करना चाहिए ? इसका उत्तर देते हुए 'अलंकार-चिन्तामणि' में श्री अजितसेन ने लिखा है
देशे मणिनदीस्वर्णधाम्पाकरमहाभुवः । ग्रामदुर्गजनाधिक्यनदीमातृकतादयः ॥३६|| ग्रामे धान्यसरोवल्लीतरुगोपुष्टचेष्टितम् । ग्राम्यमोध्यघटीयन्त्र केदारपरिशोभनम् ।।३७।। पुरे प्राकारतच्छीर्षवप्राट्टालकखातिकाः । तोरणध्वजसौषाध्वयाप्यारामजिनालयाः ।।३८।।
-प्रथम परिच्छेद देश में मणि, नदी, स्वर्ण, धान्य, खान, विस्तृत भूमि, ग्राम, दुर्ग, जनसंख्या की बहुलता और नदीमातृकता आदि का वर्णन करना चाहिए । ग्राम में घाभ्य, सरोवर, सता, वृक्ष, गायों की पुष्ट घेष्टाएं, ग्रामीणजनों का भोलापन, घटीयन्त्र और खेतों की शोभा वर्णनीय है, तथा नगर में कोट, गुम्बन, वन, अट्टालिकाएँ, परिखा, तोरण, ध्वजा, महल, मार्ग, वापिका, बाग-बगीचे और जिन-मन्दिरों का वर्णन होना चाहिए ।
महाकवि हरिचन्द्र ने धर्मशर्माभ्युदय में आनेवाले देश, पाम तथा नगर के वर्णन में साहित्य की उपर्युक्त विधाओं पर पूर्ण दृष्टि रखी है । इस काव्य में देश और नगर के वर्णन का प्रसंग प्रथम और चतुर्थ सर्ग में आया है। प्रथम सर्ग में आर्यनयर के उत्तर कोशल देवा का वर्णन करते हुए लिखते है कि उस देश में स्वर्गप्रदेशों को जीतनेवाले ग्राम थे क्योंकि स्वर्गप्रदेश एफपद्माप्सरस्-एक पद्मा नाम की अप्सरा से युक्त थे और ग्राम अनेकपदमा सरस्-अनेक पद्मा नामक अप्सराओं से सहित थे - परिहार पक्ष में, अनेक कमलीपलक्षित जल के सरोवरों से सहित थे, स्वर्गप्रदेश एक हिरण्यगर्भ-एक ब्रह्मा से सहित थे और ग्राम असंख्यात हिरण्यगर्भ-असंख्य ब्रह्माओं से-पक्ष में, अपरिमित स्वर्ण से सहित थे, और स्वर्गप्रदेश एक पीताम्बर पामरम्य थे और ग्राम अनन्तपीताम्बर घामरम्य थे--अनेक गगनचुम्बी महलों से सुशोभित थे, पक्ष में अनन्तगगनचुम्बी भवनों से रमणीय थे । इलोक यह है-...
वर्णन
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