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'मृगनयनी गन्धर्वदत्ता के कपोलों पर कस्तूरी द्वारा निर्मित पत्रकार रचना के बहाने फेशों का प्रतिबिम्बि पड़ रहा था और वाह बन्धकार के पन्नों के समान जान पड़ता था । साथ ही उसके कानों में जो वो कर्णफूल पहनाये गमे थे वे ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो अम्प्रकार के उन दो बच्चों को शीघ्रता से नष्ट करने के लिए वो सूर्य ही आ पहुँचे हों। फूलों से सुमित असा मेस माला 1 आग पसापा मानी जगत्त्रय की विजय के लिए प्रस्थान करनेवाले कामदेव का बाणों से भरा तरफस ही हो । सनी के द्वारा बनायी हुई उसकी सर्पतुल्य देणी ऐसी सुशोभित हो रही थी मानो शरीर रूप कामदेष के धनुष की होरी ही हो अथवा मुखकमल की सुगन्ध के लोभ से पायी हुई भ्रमरों की पंक्ति ही हो।
नहलायी हुई राजपुत्री पद्मा को उसकी सखियों ने बड़े हर्ष से प्रसाधनगृह के आँगन में आभूषण पहनाना शुरू किया |४०॥
क्षीर-सानर के तटपर स्थित चंचल फेन के टुकड़ों के समान कोमल वस्त्र से वेष्टित राजपुत्री ऐसी जान पड़ती थी मानो शरदऋतु की निर्मल मेघमाला से सुशोभित चन्द्रमा की रेखा ही हो अथवा फूलों से आच्छादित कल्पलता ही हो ॥४१||
'उसके चरण कमलों में जो हीरों के नूपुर चमक रहे थे वे ऐसे जान पड़ते थे मानो नखरूपी चन्द्रमा की सेवा के लिए ताराओं की पंक्ति ही उसके भरणों के समीप मायी हो । अथवा ऐसे जान पड़ते थे मानो यौवन रूपी लता के फूल ही झड़कर नीचे मा पड़े हों ।।४२।।
उसके स्थूल नितम्बमण्डल पर सुशोभित कर-धनी ऐसी जान परती थी मानो कामदेव की राजधानी का सुवर्णमय कोट ही हो, अथवा काम के खजाने को घेरकर बैठी सर्पिणी ही हो अथवा कामदेव के उद्यान की बाजी रूप कल्पलता ही हो।
क्या यह हार है अथवा सब मनुष्यों के नेत्रों का आहार ही है ? अथवा इस कमल-लोचना के स्तनरूपी पर्वत से पड़ता हुआ मरने का प्रचार है ? अथवा स्तनरूपी --.. - --. ..-- १. तस्याः कपोललचिती मृगनाभिकास
___पत्रस्यलेन कचकन्दसम:किशोरौ । ट्राम्बाधित रवियु किन कर्णशोभि तारयुग्ममधिक हरु मृगायाः ॥४॥
-लम्भ २. पादाम्बुजोतलसित-होरकनूपुरी
राविर्षभुव नन्दिरसेवनाय । वारालिः पदसमौषमतेय तस्या
तारुण्यवीरुध वापक्षिता समाति: ४२||-सम्भ । ३. हारः किं वा सकलनयनाहार एवाम्शुजाक्ष्या
यहा मनोरुहागरिपतनिरसौष पूरः । फिमा तस्याः स्तनमुकुलयो: कोपलीमणालो
भारि स्मैव विशयमशतः स्त्रीजने प्रेक्ष्यमाणः || वर्णन
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