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इसी' प्रसंग में रयों और बैलों की सेना का भी संक्षिप्त वर्णन हुआ है। रयों का वर्णन देखिए
समन्ततः काञ्चनभूमिभागास्तथा रथश्चुक्षुदिरे सुराणाम् ।
यथा विवस्वथनेमिधारा पथेऽरुणस्यापि मतिभ्रमोऽभूत् ॥४८॥
देवों के रथों ने सुवर्ण-भूमि-प्रदेशों को चारों ओर से इस प्रकार चूर्ण कर दिया था कि जिससे सूर्यरथ के मार्ग में अरुण को भी भ्रम होने लगा था।
बैल के वर्णन में स्वभावोक्ति देखिएनितम्बमाघ्राय मदादुदञ्चमिछर समाफुश्चित-फुल्लघोणम् ।
अनुवजन्तं चमरी महोक्षमिहारुणस्कष्टमहो मद्देशः ।।४९॥ भाव स्पष्ट है।
सुमेरु जैन-मान्यता के अनुसार अन्य के लाद को है.--:. भरत, ६. हभपत, ५. हरि, ४. विदेह, ५. रम्पक, ६. हैरण्यवत और ७. ऐरावत । वर्तमान में उपलब्ध भूभाग भरतक्षेत्र का ही एक भाग है। उपर्युक्त सात क्षेत्रों का विभाग करनेवाले हिमवान्, महामिवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छह कुलाचल है। ये छहों कुलाबल पूर्व से पश्चिम तक लम्बे माने गये हैं तथा इनके दोनों छोर जम्बूद्वीप को घेरकर स्थित लवण समुद्र में घुसे हुए हैं । विदेह क्षेत्र के बीच में सुमेरु पर्वत है । मेरु, सुमेरु, हेमाद्रि, रत्नसानु, सुरालय आदि उसके नाम संस्कृत-साहित्य में प्रसिद्ध है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि ज्योतिविमान उसी मेरु की प्रदक्षिणा देते हुए आकाश में घूमते है । निषध कुलाचल का रंग लाल है । इसी निषध कुलाचल को भारतीय साहित्य में पूर्वाचल या उदयाचल कहा जाता है। सूर्योदय और सूर्यास्त इसी पर्वत के पूर्व और पश्चिम भाग में होते हैं। प्रातःकाल और सायंकाल सूर्य की किरणें जब उस पर्वत पर पड़ती है तब आकाश में लाल प्रभा फैलती है। इसी निषधाचल के भागे विदेह क्षेत्र है। सुमेरुपर्वत एक लाख योजन ऊंचा बताया जाता है। उस पर समान घरातल से लेकर ऊपर की ओर क्रम से भद्रक्षालवन, नन्दनवन, सौमनसवन और पाण्डकवन ये चार बन है। सबसे ऊपर जो पाण्डुक बन है उसकी चारों विदिशाओं में चार पाण्डुक शिलाएँ हैं। खनमें ऐशान दिशा की पाष्टक शिला पर भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुए तीथंकर का जन्माभिषेक सम्पन्न होता है। यह जन्माभिषेक देवों के द्वारा सम्पन्न होता है। उन देवों में सौधर्मेन्द्र प्रमुख रहता है।
___ यतश्च धर्मनाथ, पन्द्रहवें तीर्थकर थे अतः देव लोग अभिषेक के लिए उन्हें सुमेरु पर्वत पर ले गये । इसी प्रसंग में धर्मशर्माभ्युदय के सप्तम सर्ग में सुमेरु पर्वत का वर्णन आया है। कबि हरिचन्द्र जी ने साहित्यिक विधामों की रक्षा करते हए सुमेरु पर्वत का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। उस सन्दर्भ के दो चार श्लोक देखिएवर्णन
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