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अनेकपद्माप्सरसः समन्ताधस्मिन्नसंख्यातहिरण्यगर्भाः । अनन्तपीताम्बरधामरम्या मामा जयन्ति त्रिविवप्रदेशान् ॥४४|| सर्ग १
यहाँ देश के सरोवर, अपरिमित स्वर्ण भाण्डार और गगनचुम्बी महलों का फिसना मनोरम वर्णन है।
गन्ना पेरने के यन्त्रों तथा वायु के मन्द झोंके से हिलते हुए धान्य के खेतों से परिपूर्ण पृथिवी का वर्णन देखिए
मन्त्रप्रणालीचषकैरजसमापीय पुण्ड्र सुरसासयोधम् ।।
मन्दानिलान्दोलितशालिपूर्णा बिघूर्णते यत्र मदादिबोझे ॥४५॥ सर्ग १
वहाँ मन्द-मन्द वायु से हिलते हुए धान्य के पौधों से परिपूर्ण पृथिवी ऐसी जान पड़ती है मानो यन्त्रों की नालीरूप कटोरों के द्वारा गन्ना और ईख के रसरूपी मदिरा का पान कर उसके नशा में मानो झूमती रहती है।
वहाँ की धान्म-सम्पदा का वर्णन देखिए कितना भावपूर्ण है
जनैः प्रतिग्रामसमीपमुल्चःकृता वृषाढ्यैर्वरधान्यकूटाः ।
यत्रोदयास्ताचलमध्यगस्य विश्वामशला इव भाम्ति भानोः ॥४८॥ सर्ग १
जिस देश में प्रत्येक गाँव के समीप लगानी हुई वाध की ऊंची ऊँची राशियों ऐसी जान पड़ती है मानो उदयाचल और अस्ताचल के बीच चलनेवाले सूर्य के विधाम के लिए धर्मात्मा जनों के द्वारा बनवाये हुए विश्रामशेल-विथाम करने के लिए पर्वत ही हों।
धान्य के खेतों को रखानेवाली लड़किर्या सुन्दर गीत गाती है और उन गीतों को सुनकर मृगों का समूह चित्रलिखित-सा स्थिर हो जाता है । सभीप' से निकलनेत्राले पथिक उन भूगों के समूह को चित्राभ-जैसा मानते हैं। यह कितना प्राकृतिक वर्णन है। पलोक देखिए
सस्यस्थलीपालकवालिकानामुल्लोलगोलश्रुतिनिश्चलाङ्गम् ।
यौनयूषं पथि पान्यसार्थाः सल्लेण्य-लीलामयमामनन्ति ॥५०॥ सर्ग १
उत्तरकोसल देश की नदियों का वर्णन करते हुए कवि ने अपनी काव्य-प्रतिभा को कितना साकार किया है-यह देखिए
यं तादृर्श देशमपास्म रम्यं यत्क्षारमब्धि सरितः समीयुः । बभूव तेनैव जडाशयानां तारा प्रसिद्ध किल निम्नगास्वम् ।।५।। सर्ग १
उस बसे सुपर देश को छोड़कर नदियों खारे समुद्र के पास गयी थीं इसीलिए क्या उन जलाशयों-- मूखों ( पक्ष में जलयुक्त ) का नाम लोक में निम्नगा प्रसिद्ध हुआ था।
चतुर्थ सर्ग में वत्सदेश की फल-सम्पत्ति का वर्णन करते हुए कहते हैं --
फलावनम्राम्रविलम्बिजम्बूजम्बीरमारङ्गलवङ्गपूगम । सर्वत्र यत्र प्रतिपद्य पान्थाः पाथेयभारं पथि नोवहन्ति ।।९॥ सर्ग ४
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन
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