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होता है और कृतज्ञता के नाते बीवन्धर का बड़ा उपकार करता है । कृतघ्न काठांगार और कृतज्ञ सुदर्शन मक्ष, दोनों के जीवन में स्वर्ग और नरक के समान अन्तर दिखाई देता है । भीतमूर्ति गुणमाला की रक्षा के लिए अकेले ही एक उम्मत हाथी से जूझ पड़ते हैं। सर्पदंश से मूच्छित कन्या का विषहरण करने के लिए मान्त्रिक के रूप में सामने आते है तो काष्ठांगार की मृत्यु के बाद बारह वर्ष तक पृथिवी को करभार से मुक्त कर देशवासियों के लिए एक कल्पवृक्ष के रूप में विखाई देते हैं।
आपका जीवन बड़ा ही पवित्र और परोपकारमय रहा है । इनके जीवन की विशेषता से प्रभावित होकर हो वादी मसिंह ने इन्हें क्षत्रचहामणि-मत्रियों के शिरोमणि अथवा राजराज-राजाओं के राजा-जैसे शब्दों से संजित किया है। शलाकापुरुष' न होनेपर भी पुराणकारों ने अपने पुराणों में इनका चरित्र अंकित किया है और कवियों ने इन पर गद्यपद्यात्मक काव्य लिखे है। जीवन्धरचम्पकार ने तो स्पष्ट ही घोषित किया है-'जीवन्धरस्य चरितं दुरितस्य हन्त'-जीवन्धर का चरित्र पाप को नष्ट करनेवाला है। आपने अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के समवसरण में दीक्षा मारण कर राजदुईटि विल को प्राप्त किया है। जोवन्धर, जीवन्धर-चम्पू. के नायक है। ५. गन्धोत्कट
जीवन्धर के जीवन में गन्धोत्कट को उनके पिता का स्थान प्राप्त है जिसे उसने बट्टी कुशलता से निभाया है। यह राजपुरी का एक बड़ा सेठ था। इसके पुत्र अल्पायु होते थे अतः इसने मुनि महाराज से पूछा, "क्या कभी हमारे भी दीर्घायु पुत्र होगा?" मुनिराज ने उसे सन्तोष दिलाया और कहा, "जब तुम अपने मृत पुत्र को छोड़ने के लिए श्मशान जाओगे तब तुम्हें एक भाग्यशाली उत्तम पुत्र प्राप्त होगा।" ऐसा ही हा। जीवन्धर के बाद उसकी सुनन्दा स्त्री से एक स्वयं का मी पुत्र हो गया पर उसके जीवन में कभी यह देखने को नहीं मिलता कि नन्दाय उसका निज का पुत्र है और जीवन्धर दूसरे का । उसकी स्त्री सुनन्दा भी बड़ी उदात्त महिला है। ६. गन्धर्वदत्ता
यह जीवन्मर को प्रथम और प्रमुख पस्नी है। विद्याधर गरुड़वेग की पुत्री है. संगीत की मर्मज्ञ है और जीवन्धर के भ्रमण काल में अपनी विद्याओं के उपयोग से सबको सान्त्वना देती रहती है। गन्धर्वदत्ता के कारण ही जीवन्धर का विद्याधरों के साथ सम्पर्क बढ़ा है।
१. २४तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, E नारायण, प्रतिनारायण और १ बलभद ये प्रेशठ शलाकापुरुष
कहलाते हैं।
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महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन