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आकाशगंगा के किनारे हरे रंग के पते पर यह लाल कमल फूला हुआ है, यह समझकर ऐरावत हाथी ने पहले तो बिना विचारे सूर्य का विम्ब स्वींच लिया पर जब उष्ण लगा तब जल्दी से छोड़कर सूंह को फड़फलाने लगा यह देख आकाश में किसे हँसी न मा गयी थी?
यहाँ उदाहरण के रूप में कुछ हो अर्थालंकारों के उद्धरण दिये गये हैं । धर्मशर्माम्युदय का ऐशा हम भी श्लोक नहीं है। जिसमें कोई न कोई शकार न हो ।
आगे शब्दालंकार का वैभव देखिए---
झाब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक, शब्दश्लेष और चित्रालंकार की प्रधानता है। हम देखते हैं कि धर्मशर्माभ्युदय में इन सभी अलंकारों को अच्छा प्रश्रय दिया गया है
अनुप्रास के कुछ उदाहरण देखिएयल्कायकान्ती फनकोज्ज्वलायां ॥ १-४॥ न प्रेम नम्रऽपि जने विधत्से || १-२४ ।। शेवालशालिन्युपले छलेन पातो भवेत्केवलदुःखहेतुः ॥ १-२७ ॥ उच्चासनस्थोऽपि सता न किचिन्नीचः स घिसषु धमत्करोति । स्वर्णाद्रिशुलाग्रमधिष्ठितोऽपि काको धराकः खलु काक एव ||१-३०॥ धत्तं समुत्तेजितशातकुम्भकुम्भप्रभां काञ्चन काश्चनादिः ।।३६।। तरङ्गिणीनां तरवस्तरेषु ।।१-४९।। पौराङ्गनाना प्रतिबिम्बदम्भात् ।।१-५९।। प्रालेयशैलेन्द्रविशालशालश्रोणीसमालम्बितयारिवाहम् ॥ १-८४॥ क्वचिदपि न कदाचित् केनचित् केपि दृष्टाः ।।१-८५।। सुधासुधारश्मिमुणालमालती-सरोजसा रिवं वेधसा कृतम् । शनैः शनैरियमतीत्य सा दो सुमध्यमामध्यममध्यमं ययः ।।२-३६।। ततान तन्मध्यमतीव ताननम् ।।२-४४|| इतीचिन्ताचायचक्रचालितं क्वचिन्न चेतोऽस्य बभूव निश्चलम् ॥२-७४|| वासुजतुरङ्गोर्मेस्तोरगे सैन्यवारिधः ॥३-२९11 फलावनमाविलम्बिजम्बूजम्बीरनारङ्गलवङ्गगम् । सर्वत्र यन्त्र प्रतिपय पान्थाः पाश्रेयभारं पथि नोद्वन्ति ॥९॥ को वा स्तनाग्राण्यवधूय घेनोर्बुग विदग्धो ननु दोन्धि शृङ्गम् ।।४-६६॥ यामिनीव शुचिरोधिषां परा चाश्चामरमचालयच्चिरम् ॥५-४९।।
यमकालंकार की छटा यद्यपि सर्वत्र छिटकी हुई है तथापि हम उसकी पूर्ण छटा दशम और एकादरा सर्ग में देखते हैं । कुछ स्दाहरण देखिए
मन्दाक्षमन्दा क्षणमत्र तावन्नव्यापि न व्यापि मनोभवेन । रामा वरा भावनिरम्यपुष्टबध्वा नववानवशा न यावत् ॥१०-३६।।
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन