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राजा प्रतिदिन प्रजा का कल्याण करने में समर्थ हों, उत्तम वर्षा हो, रोगों का समूह नाश को प्राप्त हो, लक्ष्मी सरस्वती के साथ प्रतिदिन परिचय करे, जिनेन्द्रदेव का मत जयवन्त हो और सबकी भक्ति जिनेन्द्रदेव में सुशोभित हो । कुरुकुलपतेः कीर्ती राकेन्दुसुन्दरचन्द्रिका विमलविशदा लोकेष्णनन्दिनी परिवर्धताम् । मम च मधुरा वाणी विन्मुखेषु विनृत्यताद् विलसितरसा सालंकारा विराजितमन्मया ॥६०॥
पूर्णचन्द्र की चांदनी के समान निर्मक -- घवल तथा आनन्द उत्पन्न करनेवाली कुरुकुलपति जीवन्धर स्वामी की कीर्ति तीनों लोकों में निरन्तर बढ़ती रहे और रस से सुशोभित अलंकारों से युक्त तथा कामदेव पद के धारक जीवन्धर स्वामी के उपाख्यान से अलंकृत हमारी मधुर वाणी विद्वानों के मुखों में नृत्य करती रहे ।
धर्मशर्माभ्युदय में छन्दों की रसानुगुणता
यतश्च रस के अनुरूपें छन्द ही काव्य में सुशोभित होते हैं अतः उनकी रसानुकूलता पर कुछ विचार किया जाता है -
आरम्भे सर्गबन्धस्य कथाविस्तरसंग्रहे । शमोपदेशवृत्तान्ते सन्तः शंसन्त्यनुष्टुभम् || श्रृङ्गारालम्बनोदारनायिका रूपवर्णनम् । वसम्तादि तदङ्गं च सच्छायमुपजातिभिः ॥ रथोद्धता विभावेषु भध्या चन्द्रोदयादिषु । पाड्गुण्यगुणा नीतिवंशस्थेन विराजते ॥ वसन्ततिलकं भाति संकरे वीररौद्रयोः । कुर्यात्तस्य पर्यन्ते मालिनीं द्रुततालवतु ॥ उपपन्नपरिच्छेदकाले शिखरिणी वरा । औवार्यरुचिरौचित्यविचारे हरिणी मता ॥ साक्षेप क्रोषटिक्कारे परं पृथ्वी भरक्षमा । प्रावृ प्रवासव्यसने मन्दाक्रान्ता विराजते ॥ शौर्यस्तवे नृपादीनां शार्दूलक्रीडितं मतम् । साग-पवनादीनां वर्णने साधरा वरा || दोषकतोटकन कुंटयुक्तं मुक्तकमेव विराजति सूतम् । निर्विषयस्तु रसादिषु तेषां निनियमश्च सदा विनियोगः ||
१. काव्ये रसानुसारेण वर्णनानुगुणेन च ।
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कुर्वीत सर्ववृत्तानां विनियोग विभागविष ।
शास्त्रे काव्येऽतिदीर्घाणा वृतानन प्रयोजनम् ।
काव्यशास्त्रेऽपि वृत्तानि रसायन्तानि काव्य तितकीय विन्यास
महाकवि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन