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इन्दुमतो के स्वयंवर में सुनन्दा और शृंगारवती के स्वयंवर में सुभद्रा उपस्थित राजाओं का परिचय देती है । दोनों को परिचय शैली में समानता है।
ततो नृपाणां श्रुतवृत्तवंशा पुंवत्प्रगल्भा प्रतिहाररक्षी । प्राक् सन्निकर्ष मगधेश्वरस्य नोरया कुमारीभवदत्सुनन्दा ॥६-२०॥
-रवेश तदनन्तर जिसने राजाओं के आचार और वंश को सुन रखा था, और जो पुरुष समान प्रगल्भ थी ऐसी सुनन्दा प्रतीहारी सबसे पहले इन्दुमती को मगधेश्वर के समीप ले जाकर बोली।
पान तीहारमदै मुक्ता मुर सिलगाशा ! प्रगल्भवागिल्यनुमालवेन्द्र नीत्वा सुमद्राभिदधे कुमारीम् ॥१७-३२॥
-धर्मशर्माभ्युदय तदनन्तर जिसने समस्त राजाओं के आचार और वंश को सुन रखा था तथा जिसकी वाणी सारपूर्ण श्री ऐसी प्रतीहारी पद पर नियुक्त सुभद्रा, कुमारी-शृंगारवती को मालबनरेश के समीप ले जाकर बोली ।
राजाओं के परिचयदान की यह पद्धति विक्रान्तकौरव और नैषधीयचरित में भी अपनायी गयी है। विक्रान्तकौरव में प्रतीहार परिचय देता है और नैषधीयचरित में सरस्वती देती है, जैषधीयचरित का परिचय सरस्वती के अनुरूप बाणों में दिया गया अवश्य है, पर उससे स्वाभाविकता का प्रतिघात हुआ है ।
__ कुमारसम्भय में कालिदास ने पार्वती के यौवनारम्भ का वर्णन करते हुए लिखा है
असंभृतं मण्डनमङ्गयष्टेरनासमाख्यं करणं मदस्य । कामस्य पुष्पव्यतिरिक्तमस्त्रं बाल्यात्परं साथ बयः प्रपेदे ॥१-३१।।
-कुमारसम्भव तदनन्तर पार्वती बाल्यावस्था के बाद आनेवाली उस यौवन अवस्था को प्राप्त हुई जो शरीरयष्टि का बिना धारण किया आभूषण थो, मदिरा से भिन्न मव का करण थी तथा कामदेव का पुष्पातिरिक्त शस्त्र थी।
उपर्युक्त पद्य के प्रथम पाद को लेकर रिचन्द्र ने धर्मशर्माभ्युदय में वृद्धावस्था का कितना सजीव वर्णन किया है, पन्ह देखिए
१. मिकारा कौरव में हस्तिमवल बारा सूसोचन1 का सौन्दर्य ण न देखिए. शीताशराबनिम्मृता नयनयोराह लादिनी चन्द्रिका
दागन्तर्दधती मद' च मधिरा तन्त्र निदिता । पुपैर पथिता निसर्गललिता माता मनोहारिणी सीमूसाद कृतोङ्गतिः स्थितिमत: विशु रसायोसिनो १२:!
-त्रिकान्तकौरव, अंक ३ ।
१.
महाकषि हरिचन्द्र : एक अनुशीलन