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परास्त कर गायें वापस ले आये । इस घटना से कुमार की बहुत कीति फैली । कुमार' ने अपने सब साथियों से कहा, "तुम लोग एक स्वर से राजा काष्ठांगारिक से कहो कि भील को नन्दाय ने जीता है।" इस प्रकार राजा के पास सन्देश भेजकर उन्होंने पूर्वघोषित गोदावरी फन्या विवाह-पूर्वक नन्दाय को दिलवायी।
भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजया पर्वत की दक्षिण श्रेणी में एक गगनवल्लभ नाम का नगर है, उसमें विद्याधरों का राजा महडवेग राज्य करता था। दैवयोग से उसके भागीदारों ने उसका अभिमान नष्ट कर दिया, इसलिए वह भागकर रत्नबीप में चला गया और वहाँ मनुजोदय पर्वत पर एक सुन्दर नगर बसाकर रहने लगा। उसकी स्त्री का नाम धारिणी था और उन दोनों के गन्नदत्ता नाम की पुत्री थी। जब वह विवाह के योग्य अवस्था में पहुंची तब राजा ने मन्त्रियों से वर के लिए पूष्ठा । उत्तर में मन्त्री ने भविष्य के ज्ञाता मुनिराज से जो सुन रखा था वह कहा
"हे राजन् | मैंने एक बार सुमेरु पर्वत के नन्दन वन में स्थित विपुलमति नामक चारणऋद्धि-धारक मुनिराज से आपकी कन्या के वर के विषय में पूछा था तो उन्होंने कहा था कि भरतक्षेत्र के हेमांगद देश में एक राजपुरी नाम की नगरी है । उसके राजा सत्यन्धर और रानी विजया के एक जोवन्धर नाम फा पुत्र हुआ है वह बीणा के स्वयंवर में गन्धर्ववत्ता को जीतेगा । वही उसका पति होगा। राजा ने उसो मतिसागर मन्त्री से पुनः पूछा कि भूमिगोचरियों के साथ हम लोगों का सम्बन्ध किस प्रकार हो सकता है ? इसके उत्तर में उसने मुनिराज से जो अन्य बातें सुन रखी थी वे स्पष्ट कह सुनायींउसने कहा कि राजपुरी नगरी में एक वृषभदत्त रोठ रहता था, उसकी स्त्री का नाम पद्मावती था और उन दोनों के एक जिनदत्त नाम का पुत्र था । किसी एक समय रामपुरी के उद्यान में सागरसेन जिन राज पधारे थे। उनके केवलज्ञानसम्बन्धी उत्सव में वह अपने पिता के साथ बाया था । आप भी वहां पधारे थे इसलिए उसे देख आपका उसके साथ प्रेम हो गया था। वहो जिनदत धन कमाने के लिए रत्नद्वीप आयेगा, उसी से हमारे इष्ट कार्य की सिद्धि होगी।"
. इस तरह कितने ही दिन बीत जाने पर जिनदत्त रत्नद्वीप आया। राजा गरुड़वेग ने उसका पर्याप्त सत्कार किया और उसे सब बात समझाकर गन्धर्वदत्ता सौंप दी। जिनदत्त सेठ ने भी राजपुरी नगरी में वापिस आकर मनोहर नामक उद्यान में गन्धर्वदता के वीणा स्वयंवर की घोषणा करायी। स्वयंवर में जीवन्धरकूमार ने १ गधिन्तामणि आदि में एश्लेख है कि कालागार की सेना के हार जाने पर नन्दपोप ने घोषणा करायी
सी और विजय के बाद जब वह अपनी कन्या जीवन्धर को देते लगा तम उन्होंने न लेकर अपने मित्र पहास्य को दिलायी। २. गद्यचिन्तामन आदि में गरुध्वेग का नगर निवालोक बहलाया है तथा उसके भाग कर रत्नदीप में बसने का कोई इग्लेख नहीं है। वर के विषय में मुनिराज की भविष्यवाणी न देकर ज्योतिषियों की बात लिखी है। जिनदत्त सेठ के अगले श्रीदत्त सेठ का उल्लेख है। श्रीदस समुदाय के लिए गया था. पर लौटते समय विद्याधर की माया से उभे लगा कि हमारा जहाज डूम गया है। वह उसके साथ विजार्ध पर्वत पर स्थित नित्यालीकनगर में पहुँचता है।