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मधु कुंड तथागत बुद्ध ने कहा है-"मनो पुव्वंगमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया" समस्त धर्म-(वत्तियां) प्रथम मन में जन्म लेती हैं, मन सब में श्रेष्ठ है, यह सृष्टि मनोमय है।'
सुख और आनंद का मधु कुड मन है, दुख और दीनता का नरक कुड भी मन ही है। मन यदि अशांति से जल रहा है, विषाद के विष से संत्रस्त है तो स्वर्ग की शीतल हवाएँ और वहां के अमत कण भी उसे शांति और सुख नहीं दे सकते । टाल्स्टाय ने इस प्रसंग पर एक कहानी लिखी है
ब्रिग्स नामक पादरी रात-दिन भगवान से प्रार्थना करता था-'हे दयामय ! प्रभु ! मुझे इस दुःखमय संसार से उठाले, अपने स्वर्ग में बुलाले जहां सुख एवं आनंद का सौरभ बिखरा रहता है।"
भगवान ने ब्रिग्स की प्रार्थना सुनी, उसे स्वर्ग में बुला लिया।
१ धम्मपद १११
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