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अनुश्रु त श्र तियाँ भी रहना पड़ेगा।" लक्ष्मी ने आगे कहा-देवराज इन्द्र के समक्ष मैंने यह प्रतिज्ञा की थी
गुरुवो यत्र पूज्यन्ते, वाणी यत्र सुसंस्कृता । अदन्तकलहो यत्र, तत्र शक्र ! वसाम्यहम् । "इन्द्र ! जिस घर में बड़ों का आदर, मधुर व सभ्यवाणी हो तथा कलह न होता हो, वहाँ मैं निरन्तर निवास करती हूँ।"
“यही बात आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व तथागत बुद्ध ने लिच्छवि क्षत्रियों से कही थी-"जब तक लिच्छवि क्षत्रिय परस्पर में एक दूसरे का आदर करेंगें, विश्वास करेंगे, संथागार में मिलकर विचार करेंगे, और न्यायपूर्वक व्यवहार करेंगे तब तक इस साम्राज्य को कोई भी शक्ति नष्ट नहीं कर सकेगी।"
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