Book Title: Khilti Kaliya Muskurate Ful
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 265
________________ सच्चे श्रोता सुनना भी एक कला है। बहुत से लोग केवल कुतूहल एवं आत्म-प्रदर्शन के लिए ही सुनने को जाते हैं। उस सुनने से न कुछ मिलता है, और न समय का सदुपयोग ही होता है। श्रोता चाहे कम मिलें, किंतु यदि उनमें सुनने की जिज्ञासा है, तो वे दो चार ही काफी हैं। बादलों को भले ही अच्छे खेत कम मिलें, पर हज़ार ऊपर खेतों में बरसने से तो दो चार उर्वर खेतों में बरसना अच्छा है। भगवान महावीर ने जो कहा है--"सुई धम्मस्स दुल्लहा'-धर्म का सुन पाना कठिन है। इसी बात को तथागत ने दुहराया है-किच्छ सद्धम्मसवन-सद् धर्म का सुनना दुर्लभ है । यह इसी बात का प्रतीक है कि जिज्ञासा के साथ सुन पाना कठिन है।। __ हजार निरर्थक वचन सुनने की अपेक्षा एक सारपूर्ण - १. उत्तराध्ययन ३८ २. धम्मपद १४।४ Jain Education International For Private Y rsonal Use Only www.jainelibrary.org

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