Book Title: Khilti Kaliya Muskurate Ful
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 280
________________ उत्साह को विजय २५७ पर आप अपने से नहीं बदलेंगे, और नहीं बदलेगा आपका यह सेवक !" "तो फिर हाथी को आगे बढ़ने दो, कुमारपाल अकेला ही काफी है" सम्राट ने जोश खाकर अपनी तलवार संभाली, और शत्रु सेना पर टूट पड़े । कुमारपाल के अविजित आत्म-विश्वास की प्रतीक तलवार जब शत्रु सेना के मस्तकों पर बिजली की तरह गिरने लगी, तो शत्रु सेना भागने लग गई । सम्राट के अटूट साहस और सामर्थ्य का चमत्कार देख दल के सैनिक एवं सेनापति भी युद्ध में कूद पड़े, और कुछ ही क्षणों में धूर्त सपादलक्ष बंदी बनकर सम्राट के चरणों में आ गिरा । कुमारपाल के अचल आत्म-विश्वास एवं अपराजेय उत्साह की यह कहानी आज भी गुजरात के इतिहास में अमर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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