Book Title: Khilti Kaliya Muskurate Ful
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 271
________________ गुस्सा क्यों करूं? एक आचार्य ने कहा है भुजंगमानां गरल-प्रसङ्गा नापेयतां यांति महासरांसि ॥' महासरोवर के उदर में हजारों नाग पड़े-पड़े करवटें लेते रहते हैं, फुकारों से विष उगलते रहते हैं, किंतु फिर भी सरोवर का मधुर जल कभी दूषित नहीं होता। सत्पुरुषों का हृदय भी सरोवर की भांति है। अज्ञान और दुष्ट मनुष्यों के वचन रूप विष की फुहारें कभी भी उन के हृदय को अपवित्र नहीं बना सकती। वस्तुतः ऐसे महापुरुष ही संसार में पूजनीय एवं वंदनीय हैं जो कानों में शूल की तरह चुभने वाले दुर्वचनों को भी हँस-हँस कर सह लेते हैं। भगवान महावीर ने कहा है जो उ सहेज्ज गामकंटए वइमए कन्नसरे स पुज्जो। १. पद्मानंदमहाकाव्य २. दशकालिक ६।३६ २४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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