Book Title: Khilti Kaliya Muskurate Ful
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 275
________________ २५२ जोवन स्फूर्तियाँ जाने कितने दिनों की मजदूरी से उसने ये पैसे बचाकर इस पुण्य कार्य में दिए हैं, अतः मैंने उसका दान सबसे बड़ा दान माना है, शायद इस निर्णय में मुझसे कोई भूल तो नही हुई न ?" मंत्रीवर का स्पष्टीकरण सुनकर लक्ष-दानी श्रेष्ठिजनों का सिर श्रद्धा से नीचे झुक गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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