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उदार दृष्टि
भारतीय साहित्य के आदिस्रोत ऋग्वेद में एक प्रार्थना है
भद्र कर्णेभिः श्रृणुयाम;
भद्र पश्येमाक्षिभिर्यजत्राः।' हम कानों से सदा कल्याणकारी सुन्दर बचन सुनते रहें, हम आँखों से सदा सबके कल्याणकारी शोभन दृश्य देखते रहें।
मनुष्य के मन की यह उदात्त-भावना है, जो उदारता, गुणानुरागिता और कृतज्ञता के फलों के रूप में पुष्पितफलित होती रहती है। . मन से सबका सुन्दर चाहना, कानों से सबकी भलाई सुनना और आँखों से सबकी अच्छाई देखना
१. ऋगवेद १६
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