Book Title: Khilti Kaliya Muskurate Ful
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 260
________________ उदार दृष्टि २३७ जीवन का दिव्य रूप है। यही भगवान महावीर का 'सर्व मैत्रिवाद' है, यही गांधी का सर्वोदय है। ___ अपने उदय के साथ दूसरों के उदय की कामना मानवजीवन की विराट ईश्वरीय दृष्टि है। और इस दृष्टि में दिव्यता तब और भी चमत्कृत हो उठती है, जब वह अपने से लघुतम प्राणियों के अभ्युदय एवं उन्नति में भी सचेष्ट हो उठती है। मानवीय चेतना के अमर स्वर-गायक रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक रूपक लिखा है। प्राचीरेर छिद्र एक नाम गोत्रहीन । फूटिया छे छोटो फूल अतिशय दीन ! धिक् धिक् करे तारे कानने सबाई । सूर्य उठि बोले तारे 'भाले' आछो भाई ? -फटी हुई भींत के छिद्र में एकदिन नाम गोत्र से हीन एक छोटा-सा अतिशय दीन नन्हा कुसुम खिला, तो पास-पड़ोस के अन्य फूल चिल्ला-चिल्लाकर उसे धिक्कारने लगे, उसकी तुच्छता पर व्यंग्य कर बराबर हंसने लगे। परंतु तभी दिनपति सूर्य ने उदित होकर अपनी स्नेह किरण-करों से सहलाते हुए पूछा -“कहो, भाई, अच्छे तो हो न?" इसी प्रसंग को अधिक स्पष्ट करने वाली एक घटना है-प्रसिद्ध चित्रकार टर्नर के जीवन की ! Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org

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