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विजयध्वज
एक विचारक ने कहा है
जब मन में दीनता जगे, तो अपने से नीचे देखो, कि संसार में तुम्हारा आसन कितना ऊँचा है।
जब मन में अहंकार की भावना उठे, तो अपने से ऊपर देखो, कि संसार में तुम तो एक नगण्य से मानव हो, जैसे अगाध समुद्र में एक लघु जलकण !
संसार में सब से कम ऐसे ज्ञानी हैं,जिन्हें अपने अज्ञान का ज्ञान है। अज्ञान का ज्ञान ही वस्तुतः ज्ञान का सार है।
एक उर्दू कवि के शब्दों में"हम जानते थे इल्म से कुछ जानेंगे, मगर जाना तो यह कि हमने न जाना कुछ भी।"
जैन साहित्य के मनीषी शब्द-शिल्पी उपाध्याय यशोविजय जी के जीवन का एक प्रसंग है। उपाध्यायजी की भुवनमोहनी विद्वत्ता से न केवल श्रमण परम्परा में ही एक गौरवानुभूति जग रही थी, किंतु अनेक दिग्गज
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