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अनुश्रुत श्र तियाँ कोरे विचार प्रभावशून्य होते हैं, किंतु आचार अत्यंत ' शीघ्र अपना जादुई प्रभाव सब पर डाल देता है।
गांधीजी के जीवन की एक घटना है। वे विलायत में थे। एक पादरी महाशय ने सोचा यदि गांधी को मैं ईशु का भक्त बना दू तो हिन्दुस्तान में करोड़ों आदमी अपने-आप ईसाई बन जायेंगे। पादरी ने गांधीजी से संपर्क बढ़ाया; और रविवार को धर्म चर्चा के लिए अपने घर पर निमंत्रित किया । मैत्री का हाथ और आगे बढ़ा, पादरी ने प्रस्ताव किया-"आप. प्रति रविवार को मेरे घर पर भोजन के लिए आया करें, ताकि कुछ समय बैठ कर हम धर्म चर्चा कर सकें।" - गांधीजी ने प्रसन्नतापूर्वक उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। रविवार को पादरी ने गांधीजी के लिए निरामिष भोजन की व्यवस्था कर दी।
पादरी के लड़कों ने पूछा-'पिताजी ! यह सब क्या हो रहा है ?"
"मेरा मित्र गांधी हिन्दुस्तानी है, वह मांस नहीं खाता इसलिए शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की है"-पादरी ने बताया।
"गांधी मांस क्यों नहीं खाता"......?' बच्चों ने सरलता से पूछा।
पादरो ने कुछ व्यंग्य मिश्रित स्वर में कहा-“वह कहता है, जैसे हम सब के प्राण हैं, वैसे ही पशु पक्षियों
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