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जीवन एक खिला हुआ पुष्प है। उससे प्रतिक्षण सद्गुणों की मधुर - मनभावनी परिमल प्रस्फुटित होती रहती है । जिसकी गुण-दृष्टि खुली है, वह इन पुष्पों के सुकुमार सान्दर्य से मन को परितृप्त करता रहता है, जिसके कृतज्ञता रूप नासिकारंध्र उन्मुक्त है, वह मधुर सुवास के उच्छवास से अपूर्व पुलक के साथ - दिव्य स्फूर्ति पा लेता है ।
इतिहास के पृष्ठों पर ज्ञात-अज्ञात कुछ सत्पुरुषों के दिव्य गुणों की मधुर परिमल शब्दों की देह में बंधकर यहाँ रेखांकित हुई है, अपनी उद्बोधक पावन स्फूर्तियाँ लिये ।
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