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भद्रता की कसौटी
भद्रता, सज्जनता, साधुता - मनुष्य की वेशभूषा से नहीं, उसके चरित्र से व्यक्त होती है । भगवान महावीर ने कहा- सिर मुंडा लेने मात्र से कोई श्रमण नहीं हो जाता और 'ओम्' का उच्चारण कर देने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता, किंतु समता के आचरण से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण होता है ।" " ढाई हजार वर्ष के बाद भी जीवन के 'सत्यं शिवं सुन्दरं' की यह ध्वनि मंद नहीं पड़ी है । आज भी सज्जनता और साधुता का अंकन जीवन के बाह्यदर्शन से नहीं, किंतु अन्तरंग दर्शन से किया जाता है । भारतीय संस्कृति के इस अमर संगीत की ध्वनि स्वामी विवेकानन्द के उत्तर में प्रतिध्वनित हुई थी, जब वे शरीर पर काषाय वस्त्र धारण किए, सिर पर पगड़ी, हाथों में डंडा और कंधों पर चादर डाले शिकागो (अमेरिका) की सड़कों पर घूम रहे थे ।
१. उत्तराध्ययन २५।३१-३२
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