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जीवन स्फूर्तियाँ
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पराजित होकर पीछे हटते जा रहे थे । एक दिन प्रसिद्ध सूफी संत फरीदुद्दीन अत्तार तुर्कों के चंगुल में फंस गये । और तुर्कों ने उनपर जासूसी का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनादी ।
ईरान में इस खबर से हलचल मच गई। एक धनिक ने तुर्कों को संत के तौल के बराबर हीरे दे दिए। कईओं ने अपने प्राण भी दे दिए, पर तुर्की सुलतान ने संत अत्तार को नहीं छोड़ा ।
एक दिन ईरान का बादशाह स्वयं दुश्मन सुलतान के द्वार पर पहुंचा, और बोला- 'जिस राज्य के लिए आपकी कई पीढ़ियां हमसे निरंतर लड़ती आ रही हैं, और वह आपको नहीं मिल रहा है, वही राज्य आप हमसे ले लीजिए और अत्तार को छोड़ दीजिए । धन नश्वर है, राज्य भी नश्वर है, किंतु संत अविनाशी है, संत अत्तार को खोकर ईरान हमेशा के लिए कलंकित हो जायेगा ।"
बादशाह के आग्रह ने तुर्कों में सद्बुद्धि जगाई, अत्तार को मुक्त किया गया ।
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