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सम्मान किसमें
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गुण ही मनुष्य को महान बनाते हैं, संख्या पद और आडम्बर नहीं ।
यूनान के राज इतिहास की घटना है । एक बार सिकन्दर ने अपने सेनापति के स्वाभिमानी स्वभाव से रुष्ट होकर उसे पदच्युत कर छोटा सूबेदार बना दिया था ।
कुछ दिनों बाद सूबेदार किसी कार्यवश सिकन्दर के समक्ष उपस्थित हुआ । सिकन्दर ने सूबेदार को घूरकर देखा, और पूछा - " मैं तुम्हारे चेहरे पर वही प्रसन्नता देख रहा हूँ जो सेनापति पद के समय थी क्या तुम सचमुच पहले जैसे ही प्रसन्न हो ?"
सूबेदार ने सिर झुकाकर कहा - " श्रीमान् ! मैं तो पहले से अधिक सुखी हूँ । पहले ऊँचे पद के कारण अनेक लोग मुझसे डरते रहते थे । मिलने में संकोच करते थे । पर अब वे मुझसे बड़े प्रेम से मिलते हैं, एक साथी की तरह मेरा आदर करते हैं, मुझे अब सेवा का अवसर भी अधिक मिल रहा है, और सब के स्नेह का दान भी ।"
"क्या, पदच्युत होने में तुम्हें कोई अपमान नहीं लगा" - सिकन्दर ने पूछा ।
"महाराज ! अपमान कैसा ? आप सम्मान पद में मानते हैं, और मैं मानवता में । ऊँचा पद पाकर भी यदि कोई जनता को सतावे, जुर्म करे, और अहंकार के नशे में छक जाये तो क्या वह सम्मान पा सकेगा ? सम्मान
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