________________
बड़ों का क्रोध
संत पुरुष कभी क्रोध नहीं करते । यदि किसी प्रसंग पर क्रोध आ भी जाता है तो वे उसे तत्क्षण मिटा देते हैं, जैसे बालू मिट्टी पर खिची हुई रेखा । तथागत बुद्ध ने कहा है-जो ज्ञानी हैं, विवेक से जिसका अन्तःकरण प्रकाशमान है, नीति और व्यवहार का जिसे परिज्ञान है वह व्यक्ति बढ़े हुए क्रोध को शान्ति से यों समाप्त कर देता है, जैसे देह में फैले हुए सर्प विष को औषधि से तुरंत उतार दिया जाता है
यो उप्पतितं विनेति कोचं,
विसठं सप्पविसं व ओसधेहिं ।' विवेकी पुरुष के इस प्रकार के क्रोध को जैन सूत्रों में 'संज्वलन क्रोध' कहा है-- जो बालू मिट्टी के ढेर पर खिची हुई रेखा के समान विचार-चिंतन के सामान्य प्रयत्न से ही शीघ्र समाप्त हो जाता है।
१. सुत्तनिपात ११११
२१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org