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राक्षसी और देवी
नारी सृष्टि की महती शक्ति है। उसने निर्मात्री शक्ति के रूप में भी इतिहास को मोड़ दिया है, संहारिणी शक्ति के रूप में भी ! इसलिए वह भगवान महावीर की सत्यानुभूति में - 'देव गुरु जणणी'--परम वन्दनीया मातृ शक्ति के रूप में वंदित हुई है, तो "बहुमायाओ इत्थियारे"-स्त्रियां मायाविनी और धूर्त होती हैं-के राक्षसी रूप में भी ! शंकराचार्य ने जहाँ-"द्वारं किमे नरकस्य नारी"-के द्वारा उसके एक पहलू को व्यक्त किया है तो ऋगवेद के ऋषि ने उसे- “सुमंगली रियं वधू' यह गृहवधू सुमंगली, कल्याणवाली हैकह कर नारी के उज्जवल पक्ष को उजागर भी कर दिया है।
१. उपासक ३।१३७ २. सूत्रकृतांग
३. प्रश्नोत्तरी ४. ऋगवेद १०८५१३३
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