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अनुश्रुत श्रुतियाँ 'पति' के साथ 'स्वामित्व' की भावना जुड़ी है, जब कि 'पिता' के साथ वात्सल्यपूर्ण दायित्व का संस्कार है। पिता प्रजा को 'सेवक' के रूप में नहीं, संतान के रूप में देखता है, उसकी सुख-दुःख की अनुभूति में तादात्म्य करता है। प्रजा के सुख के लिए अपना जीवन अर्पण कर देता है और उसके दुःख दारिद्रय की चादर स्वयं ओढ़ लेता है।
सन् १९१६ में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के बाद गांधीजी चम्पारन गये । बा उनके साथ एक गांव में गई, वहां औरतों के कपड़े बहुत गंदे देखकर बा ने उन्हें सफाई रखने के लिए समझाया।
एक गरीब किसान औरत जिसके तन पर फटा हुआ गंदा एक ही कपड़ा था । बा को अपनी झौंपड़ी में ले गई। और बोली-"माताजी ! देखिए आप, मेरे घर में कुछ भी नहीं है, सिर्फ यह एक मैली धोती है जो मेरी देह की लाज रखती है । अब बतलाइए मैं क्या पहनकर इसे धोऊ?"
बा का हृदय द्रवित हो गया, उसने गरीब किसानों की कष्ट कहानी गांधीजी से सुनाई तो गदगद् हृदय से गांधीजी ने कहा- "इस गरीब देश में ऐसी लाखों बहनें हैं जिनके तन पर लाज रखने के लिए भी कपड़ा नहीं है और मैं कुर्ता धोती चादर पहने बैठा हूँ, जब मेरी मां
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