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विनम्रता
तथागत बुद्ध ने कहा है- अज्ञानी की दो निशानी हैंअहंकार और परंकार !"
जो अपने ज्ञान का, धर्माचरण का, धन का रूप का अहंकार करता है, वह कितना ही पढ़ा लिखा हो, अज्ञानी है । जो परंकार - (यह तेरा - यह मेरा ) के चक्कर में पड़कर आसक्ति के जाल में फंसे रहते हैं वे भी मूर्ख हैं । अहंकार - वही करता है, जिसमें ज्ञान की कमी होती है । - अर्धो घटो घोषमुपैति नूनं - आधा घड़ा छलकता है, पूरा घड़ा निःशब्द रहता है । फूलों का रस प्राप्त कर मधुमक्खी मौन हो जाती है, फलों से युक्त हो वृक्ष नम जाते हैं, जल से भरी बदरियां धरती पर झुक जाती हैं, ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य विनम्र हो जाते हैं- "नच्चा नमइ मेहावी " २ - जैसे पक जाने पर फल मधुर हो जाता
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१. उदान ६।६
२. उत्तराध्ययन १ । ४५
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