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प्रचार का चमत्कार
१५१ के भी प्राण हैं, हमें कोई मारकर खाये तो जैसे हमें कष्ट होता है, वैसा ही कष्ट उन्हें भी होता है। आखिर हिन्दुस्तानी जो है .......।"
बच्चों पर पादरी के कथन की प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई। वे बोले-"पिताजी ! यह तो अच्छी बात है, हमें भी मांस नहीं खाना चाहिए।" .. "बेटे यह तो उसके धर्म की बात है, हमारे धर्म की नहीं'। पादरी ने उपेक्षा पूर्वक कहा । बच्चे उसके मुह की ओर देखते ही रह गये । “अच्छी बात किसी भी धर्म की हो, वह क्यों नहीं माननी चाहिए-?" लड़कों के मन में कुतूहल उठा। ___ गांधीजी बराबर हर रविवार को आते, धार्मिक वर्चाएं चलती। कभी-कभी बच्चे भी उन्हें सुन लेते। गांधीजी का मधुर व शांत स्वभाव, दयालु हृदय और सभ्य व्यवहार उन्हें बहुत पसंद आया। धीरे-धीरे उनका हृदय गांधी की ओर खिंचने लगा। एक दिन बच्चों ने रादरी से कहा-“पिताजी ! कल से हम भी मांस नहीं खायेंगे । गांधी के धर्म की बातें हमें अच्छी लगी है।"
बच्चों की बात सुनकर पादरी के पैरों को जमीन खिसकने लगी। वह विचारों में डूब गया- "मैं गांधी को ईसाई बनाना चाहता था, पर मेरे ही लड़के हिन्दु बनने जा रहे हैं।"
दूसरे रविवार को जब गांधीजी आये तो पादरी महाशय ने भोजन के पश्चात् बड़ी विनम्रता से कहा--
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