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तुम महान् हो ___मंदस्मित के साथ तथागत बोले-"और यदि दूसरे गांव में यही भेट मिली तो....?"
"देव ! हम उसे भी छोड़ देंगे....!"-आनन्द ने कहा।
आंतरिक पुलक और धैर्य की मंद स्मिति में तथागत ने कहा-"वत्स! एक यात्री दावानल बुझाने के लिए घर से निकला, मार्ग में जंगल की छोटी-छोटी चिनगारियां उछल-उछल कर गिरने लगीं तो क्या वह उनसे घबरायेगा ? हार कर लौट आयेगा ?"
"नहीं भंते ! वह अपने ध्येय की ओर बढ़ता ही जायेगा।" आनन्द ने विनम्रता के साथ उत्तर दिया ! ___"वत्स ! हम भी जन्म-मरण का दावानल बुझाने निकले हैं, देह कष्ट की इन चिनगारियों से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ते चले जाना है। निंदा-प्रहार से क्या, मरणदायी त्रास से भी नहीं घबराना है। आनन्द ! तुम महान हो, अपनी महत्ता को समझो, अपने ध्येय का चिंतन करो.... सुख-दुःख से अप्रभावित रहने वाला ही सच्चा साधक होता है।"
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