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आसक्ति आसक्ति सब दुःखों का मूल है। मनुष्य कामनाओं के वश होकर अनन्त-अनन्त पीड़ाए, अगणित यंत्रणाएं भोगता रहता है। श्री मद्भागवत का एक वचन है
“दुःखं काम सुखापेक्षा।"१ संसार में दुःख क्या है ? । काम सुखों की कामना ही दुःख है। भ० महावीर ने कहा है
“नथि एरिसो पासो पडिबंधो"२ कामना-तृष्णा के समान अन्य कोई जाल नहीं, ऐसा कोई अवरोध नहीं, जो प्राणी को दु:खों में फंसाकर रोके रखता है।
जैसे गुव्वारे में हवा भरी रहती है, वैसे ही कामनाओं के गुव्वारे में क्लेश एवं पीड़ाओं की हवा रहती है, मनुष्य
१. ३१।१६।४१
२. प्रश्न व्याकरण ११५
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