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साथी की करतूत
"१
संसार में कुछ ऐसे घड़े होते हैं, जिनके मुख पर मधु का ढक्कन रखा होता है, पर भीतर में हलाहल जहर भरा रहता है । " मधु कु भेणाममेगे विषपिहाणे | "" संस्कृत सूक्ति है - अधरेषु अमृतं केवलं, हृदि हालाहलमेव तेषाम् ।
उनके अधरों पर अमृत लगा रहता है, किंतु हृदय में घोर हलाहल | महाभारत के शब्दों में
"वाङ् नवनीतं हृदयं तीक्ष्णधारम् । "
वाणी मक्खन के समान और हृदय पैनी धार वाले तीक्ष्ण छुरे के समान है ।
जीवन की यह विडम्बना है, बहुरूपियापन है । और है अपने एवं संसार के साथ धोखा ।
१. स्थानांग ४|४
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२. महाभारत ३।१२३
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