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गुरुमंत्र आत्म-लोक के उन्मुक्त विहग संतजनों ने सांसारिक भोग वैभव, सुख-दुःख को --"विज्जुसंपायचंचलं'' बिजली की चमक की भांति चंचल कहा है, और मानसलोक के मुक्तविहारी कविजनों ने उसे-"चक्रारपंक्ति रिव गच्छति भाग्यपंक्ति:"२ रथ के पहिए की तरह भाग्य का चक्र घूमता रहता है, कहकर इसी शाश्वत सत्य को परिपुष्ट किया है।
यह 'क्षणिकवाद' जीवन को निराशा के अंधकार से गहराने के लिए नहीं, किंतु सुख-दुःख के आघातों को धैर्य पूर्वक सहने के लिए है।
सुख भी क्षणिक है, अतः उसका अहंकार मत करो। आर दुःख भी क्षणिक है, अतः मन को दीनता से कंपित मत करो-दोनों ही मेहमान हैं, आये हैं, और चले जायेंगे
१. उत्तराध्ययन १८१३ २, महाकवि भास-स्वप्नवासवदत्ता नाटकम् १५४
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