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तीन गुण
भगवान महावीर ने अपने धर्म संदेश में एक जगह कहा है
अपुच्छिओ न भासेज्जा भासमाणस्स अंतरा । पिट्ठिमंसं न खाइज्जा माया मोसं विवज्जए । '
"बिना पूछे बोलना नहीं चाहिए, दो आदमियों के वार्तालाप के बीच में नहीं बोलना चाहिए, किसी की चुगली नहीं खानी चाहिए, और मन को झूठ-कपट से दूर, सरल रखना चाहिए ।"
उपर्युक्त संदेश समाज में प्रतिष्ठा और लोक प्रियता प्राप्त करने का जीवन मंत्र है ।
बिना पूछे नहीं बोलने वाला, मधुर बोलने वाला, और हृदय को सरल रखने वाला किस प्रकार प्रीतिपात्र बनता है, इस पर एक रूपक प्राचीन लोकसाहित्य में उपलब्ध होता है ।
१. दशवेकालिक ८४७
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