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झूठी बड़ाई
परनिंदा महादोष है ! संत कवि तुलसीदास र्ज की वाणी ने उसे संसार के निकृष्टतम पापों में गिना है" पर निंदा सम अघ न गरीसा" !
किंतु उससे भी बड़ा दोष है- आत्म प्रशंसा ! और वह भी मिथ्या आत्म-स्तुति !
कहते हैं जब गुणहीन व्यक्ति अपने को गुण श्र ेष्ठ ख्यापित करने की दुश्चेष्टा करता है, तो पृथ्वी हिलने लग जाती है, आकाश में छिद्र हो जाते हैं और सुन्दर सृष्टि दूषित गंध से घुटने लग जाती है ।
जैन सूत्रों में कहा है
जो व्यक्ति अपने किए हुए दोषों को छिपाकर सभा में अपने को गुणी और चरित्रसंपन्न दिखाने की चेष्टा करता है, वह संसार का सबसे बड़ा पाप कर्म 'महामोह' का भागी होता है ।
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१ दशाश्र ुतस्कंध
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