________________
४७
अन्न की कुशलता
अन्न, जल और पवन-सष्टि के तीन महान् रत्न है। मनुष्य दिग्भ्रांत होकर पत्थरों के टुकड़ों को रत्न समझने लगता है, किंतु यदि अन्न न मिले तो वे रत्न कहे जाने वाले बहुमूल्य प्रस्तर खण्ड किस काम के ?
प्राचीन आचार्यों की दीर्घदर्शी-मेधा ने अन्न का अपार महत्व समझा, और कहा-जो मनुष्य अन्न का दुरुपयोग करता है, वह अपने प्राणों को क्षीण करता है। इसलिए
अन्नं न निन्द्यात्'–अन्न की अवहेलना न करो।
अन्न बहु कुर्वीत्, तद् व्रतम्-अन्न अधिकाधिक उपजाना मनुष्य का राष्ट्रीय व्रत है। __ अन्न की महत्ता प्रदर्शित करने वाली एक प्राचीन लोक कथा जैन साहित्य के पृष्ठों पर अंकित है
१. २. तैत्तिरीय उपनिषद् ३।७-६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org