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सच्चा पाठ
दूसरों के बगीचे की रखवाली करने वाला-माली हो सकता है, बगीचे का मालिक नहीं। दूसरों की गायों की देखभाल करने वाला ग्वाला हो सकता है, गायों का स्वामी नहीं, वैसे ही केवल धर्म ग्रन्थों की बातें करने वाला, संहिताओं को रटकर शोर करने वाला शास्त्रपाठी हो सकता है, शास्त्र का अनुयायी नहीं।'
शास्त्र की चर्चा करने वाला शास्त्री होता है, उनका आचरण करने वाला साधु ।
महापुरुष शास्त्रों की दुहाई शब्दों से नहीं, जीवन से देते हैं। वे मुख से नहीं, मन से शास्त्र का अध्ययन करते हैं।
महाभारत का एक प्रसंग है। द्रोणाचार्य की सन्निधि में राजकुमारों का अध्ययन चल रहा था। एक दिन
१. बहु पि चे सहितं भासमानो न तक्करो होति नरो पमत्तो। गोपो व गावं गणयं परेसं, न भागवा सामञ्जस्स होति ।
धम्म पद १।१६
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