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आग्रह का खूटा शास्त्र-मानव के उदात्त विचार-मन्थन का नवनीत है, उससे जीवन में सत्य-सदाचार आदि सद्गुणों की पुष्टि होनी चाहिए। सेवा-करुणा की दिव्यता चमकनी चाहिए । न कि आग्रह - कदाग्रह - विग्रह की कुटिल भीषणता! तथागत बुद्ध ने कहा हैभिक्खवे, कुल्लूपमो मया धम्मो देसितो,
नित्थरणत्थाय, णो गहणत्थाय ।' -भिक्ष ओ ! मैंने बेड़े की भाँति पार जाने के लिए धर्म का उपदेश किया है, न कि इसे पकड़ रखने के लिए।
धर्म का अभिनिवेश-उन्माद बन जाता है,शास्त्रों का मोह-आग्रह बन जाता है और विचारों की झूठी पकड़ विचार मूढ़ता में परिणत हो जाती है।
१. मज्झिमनिकाय १२२२१४
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