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अनुश्रुत श्रुतियाँ
वाणी से मिथ्या नहीं बोलता, ऐश्वर्य लाभ कर अहंकार नहीं करता, वह इस कक्कार के योग्य है ।"
राज पुरोहित ने सोचा, यद्यपि ये गुण मुझ में नहीं हैं, किंतु मैं झूठ बोलकर ये मालाएं लेलू तो किसे पता चलेगा, और फिर सर्वत्र मेरी ख्याति भी हो जायेगी ।" पुरोहित ने अपने का योग्य बताकर वह माला लेली ।
दूसरे देव पुत्र ने कहा
यस्स चित्त अहालिह सद्धा च अविरागिनी । एको सादुन भुजेय्य स वे कक्कारु मरहति ॥
- जिसका चित्त हल्दी की तरह कच्चा न हो अर्थात् स्थिर हो और जिसकी श्रद्धा दृढ हो, किसी स्वादिष्ट वस्तु को अकेला नहीं खाये वही कक्कारु के योग्य है ।
पुरोहित ने इन गुणों को भी अपने में बताकर दूसरी माला भा लेली । तीसरे देव पुत्र ने कहा
धम्मेन वित्तमे सेय्य न निकत्या धनं हरे । भोगे लद्धा न मज्जेय्य सवे कक्कारु मरहति ॥ - जो धर्म से धन प्राप्त करे, किसी को ठगे नहीं और भोग सामग्रियों को प्राप्त कर प्रमादी न बने, वही कक्कार के योग्य है ।
पुरोहित ने अपने को इन गुणों से भी युक्त बताया और माला प्राप्त करली । चोथे देव पुत्र ने कहा
सम्मुखा वा तिरोक्खा वा यो सन्ते न परिभासति । यथावादी तथाकारी स वे कक्कारु मरहति ॥ • जो सामने या पीठ पीछे कभी किसी सत्पुरुष को
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