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गुण दृष्टि
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गुणानुरागी दृष्टि मिथ्यात्व के घने अंधकार में से भी सम्यक्त्व की ज्योति प्राप्त कर लेता है । आचार्य जिनभद्र के शब्दों में
"मिच्छत्तमय समूहं सम्मत्तं ।" "
निर्मल सम्यक् दृष्टि संपन्न साधक के लिए मिथ्यात्व का समूह भी सम्यक्त्व में परिणत हो जाता है ।
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भारतीय संस्कृति के महान चिन्तक मनु के शब्द हैं"विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् " विष में से भी अमृत ग्रहण कर लेना चाहिए, बच्चे से भी सुभाषित सीख लेना चाहिए ।
जैन कथा साहित्य में वासुदेव श्री कृष्ण के जीवन का एक मधुर प्रसंग है । एक बार वासुदेव श्री कृष्ण राज्य के प्रमुख अधिकारियों के साथ तीर्थङ्कर नैमिनाथ के दर्शन करने रैवताचल पर स्थित सहस्राम्रवन की ओर जा रहे थे । मार्ग में एक संकरी गली से गुजर रहे थे कि एक मरे हुए एक कुत्त े की भंयकर दुर्गन्ध से सब का जी घबराने लग गया । छिः छिः करते हुए सभी ने नाक-मुंह पर कपड़े बांधे और घबराए हुए से घोड़ों पर ऐड़ लगाकर जल्दा जल्दी गली को पार करने लगे ।"
वासुदेव श्री कृष्ण भी कुत्त े की सडी गंध से परेशान थे। पर, फिर भी वे शांत गति से बढ़ रहे थे । सामंतों को
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१ विशेषा० ६५४
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२ मनुस्मृति २।२३६
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