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अपना मांस
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भी स्वर्ण मुद्राएं देनी हों चरणों में अर्पित हैं । पर मुझे जीवन दान दीजिए ।
लाख स्वर्ण मुद्रा लेकर महामात्य ने दूसरे सामंत के द्वार खटखटाए | उसे महाराज की अस्वस्थता और दो तोला मांस की आवश्यकता बतलाई, बदले में राज्य की ओर से एक लाख स्वर्ण मुद्रा का उपहार और आदर्श राजभक्ति का प्रमाण पत्र भी ।
सामंत गिड़गिड़ा कर चरणों में गिर पड़ा। " महामात्य ! मुझ पर दया कीजिए, ये दो लाख स्वर्ण मुद्रा चरणों में रखता हूँ, कृपा कर कहीं से किसी अनाथ दीन का मांस खरीद कर महाराज की चिकित्सा करवाइए ।"
रात्रि के सघन अंधकार में अभयकुमार विवेक का दीपक लिए अनेक सामंतों के हृदय का अन्तर पट- खोलखोल कर देख आये । लाखों स्वर्ण मुद्राओं का भार लिए लौट आये, दो तोला माँस कहीं नहीं मिला ।
दूसरे दिन महाराज राजसभा में प्रसन्न मुद्रा में उपस्थित थे । महामात्य ने पिछले सप्ताह की चर्चा के प्रकाश में रात्रि की घटना का रहस्य खोला । और स्वर्ण मुद्राएं सिंहासन के सामने रखते हुए बोले - "महाराज ! दो तोला स्वर्ण के बदले ये लाखों स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं । स्वर्ण मुद्राओं की चमक से सामंतों के मुख मलिन
पड़ गए ।
अभयकुमार ने महाराज की ओर देखा, फिर सामंतों के नीचे झुके मलिन मुखों की ओर देख कर कहा
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