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मोह भंग
प्राणी चाहे छोटा है या बड़ा, ऊंचा है या नीचा, चैतन्य दृष्टि से उसमें कोई अन्तर नहीं है। भगवान महावीर ने कहा है-"हत्थिस्स य कुथुस्स य समे चेव जोवे ।"१-आत्मा-चैतन्य की दृष्टि से हाथी और कुथुआ दोनों की आत्मा एक समान है।
यही गीता की चैतन्य दृष्टि है-"शुनि चव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥"२
सच्चा तत्त्वज्ञानी कुत्ते और चण्डाल में आत्मा को एक समान देखता हुआ सम-दृष्टि रखता है।
पर, देखा यह गया है, तत्त्वज्ञान की गंभीर चर्चा करने वाले विद्वान व आत्माद्वैत का डिडिमनाद करने वाले आचार्य भी बद्ध मूल दैहिक भावना के वश होकर इस आत्मज्ञान को भूल जाते हैं, और दैहिक आधार पर एक को तुच्छ, एक को श्रेष्ठ मानने लग जाते हैं। वस्तुतः यह तत्त्वज्ञान की विडम्बना है ।
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१ भगवती ७८ २ गीता ५।१८
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