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अन्तर दृष्टि
ने ब्राह्मण को सरोष तर्जना दी, और अपने राज्य से बाहर चले जाने की आज्ञा भी ।
ब्राह्मण ने पूछा - "महाराज ! यह बतला दीजिए कि आपका राज्य कहाँ तक है, क्योंकि राज्य की सीमा का ठीक-ठीक ज्ञान होने पर ही मैं उससे बाहर जा सकूँगा ।"
ब्राह्मण के प्रश्न से आत्मज्ञानी जनक के मन पर एक झटका लगा, वे सोचने लगे - “सम्पूर्ण पृथ्वी पर मेरा अधिकार है । फिर कुछ गहरे उतरे, नहीं ! पृथ्वी पर अनेक बलशाली शासक राज्य कर रहे हैं । उन्हें मिथिला पर ही अपना अधिकार दीखने लगा । आत्म-ज्ञान का एक झौंका फिर लगा, अधिकार की सीमा घटने लगी, प्रजा पर फिर सेवकों पर अपने अन्तःपुर पर ओर फिर शरीर पर अधिकार की सीमा संकुचित हो गई । महाराज और गहराई में उतरे तो उन्हें भान हुआ कि यह सब तो नश्वर है, इन पर अधिकार कैसा ? मेरा अधिकार तो सिर्फ मेरी आत्मा पर है ।" वे शांत गम्भीर वाणी में बोले - "विप्र ! किसी भी वस्तु पर मेरा अधिकार नहीं है, आप जहां चाहें, वहाँ रहिए ।'
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१ महाभारत आश्वमेधिक पर्व
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