________________ हाथ में डण्डा पकड़ा / उण्डे को देखकर भिखारी डरने लगे। इस भांति इन्होंने धर्म को कलंकित कर गला xxx श्री पालीताचार्य भी देश में पधारे / तब साधुओं का पतित आचार देखकर उन्हें समझाया। परन्तु मिथ्यात्व के उदय न समझे / Xxx xxx इन्होंने (शिथिलाचारियों ने ) अपनी पूजा के लिये चोंतरा, चैत्य, पगल्या, मंदिर, देहरा बंधवाये / अलग-अलग गच्छ बंधी करी। धर्म के डोंगी बने / xxx xxx आचार्य, ऋषि, मुनि, आदि शब्दों को तोड़कर विजय, सूरि, पन्यास, यति आदि शब्दों को जोड़ने लगे। 888 स्थानकपंथी प्राचार्य हस्तीमलजी ने उक्त दुःस्साहस पूर्ण माक्षेप श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनाचार्यों आदि पर किया है / इसके विषय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज को जो भी उचित हो करना चाहिए एवं जैन समाज की एकता के प्रेमी ( ! ) "जैन इतिहास समिति" [लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर-३ ] पर विरोध सूचक पत्र भी लिखमा चाहिए / इन्हीं प्राचार्य द्वारा रचित दूसरी पुस्तक "जैनधर्म का मौलिक इतिहास खंड-१ और 2" है, जिसमें भी ऐसी ही साम्प्रदायिक कटुता उभारने वाली और शास्त्र निरपेक्ष मनघडंत बातें भरी पड़ी हैं। इनके इतिहास की कल्पित और झूठ कुछ बातें प्रस्तुत हैं / . सगर चक्रवर्ती के 60 हजार पुत्रों की प्रष्टापदजी तीर्थरक्षा में मौत हुई थी, इस पर वे लिखते हैं कि xxx संभव है, पुराणों में शताश्वमेधी की कामना करने बाले सगर के यज्ञाश्व को इन्द्र द्वारा पाताल लोक में कपिलमुनि के पाश बांधने जोर